चाह गई चिन्ता मिटी, मनुआ बेपरवाह. जिनको कछु न चाहिये, वे साहन के साह. हिन्दी अर्थ: अगर व्यक्ति आकांक्षाओं (इक्छओं) को छोड़ दे तो उसकी चिन्तायें समाप्त हो जातीं हैं और मन बेपरवाह. जिन्हें कुछ भी नही चाहिये, वो राजाओं के राजा होते हैं क्योंकि वो हर हाल में खुश रहते हैं. भावार्थ: हमारी चिंताएं, हमारी असीमित इच्छाओं के …